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  • यजुर्वेद - अध्याय 25/ मन्त्र 11
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - ईश्वरो देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    यः प्रा॑ण॒तो नि॑मिष॒तो म॑हि॒त्वैक॒ऽइद्राजा॒ जग॑तो ब॒भूव॑।य ईशे॑ऽअ॒स्य द्वि॒पद॒श्चत॒ु॑ष्पदः॒ कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः। प्रा॒ण॒तः। नि॒मि॒ष॒त इति॑ निऽमिष॒तः। म॒हि॒त्वेति॑ महि॒ऽत्वा। एकः॑। इत्। राजा॑। जग॑तः। ब॒भूव॑। यः। ईशे॑। अ॒स्य। द्वि॒पद॒ इति॑ द्वि॒ऽपदः॑। चतु॑ष्पदः। चतुः॑पद॒ इति॑ चतुः॑ऽपदः। कस्मै॑। दे॒वाय॑। ह॒विषा॑। वि॒धे॒म॒ ॥११ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यः प्राणतो निमिषतो महित्वैक इद्राजा जगतो बभूव । य ईशे अस्य द्विपदश्चतुष्पदः कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यः। प्राणतः। निमिषत इति निऽमिषतः। महित्वेति महिऽत्वा। एकः। इत्। राजा। जगतः। बभूव। यः। ईशे। अस्य। द्विपद इति द्विऽपदः। चतुष्पदः। चतुःपद इति चतुःऽपदः। कस्मै। देवाय। हविषा। विधेम॥११॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 25; मन्त्र » 11
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    पदार्थ -
    हे मनुष्यो! जैसे हम लोग (यः) जो सूर्य (प्राणतः) श्वास लेते हुए प्राणी और (निमिषतः) चेष्टा करते हुए (जगतः) संसार का (महित्वा) बड़ेपन से (एकः) असहाय एक (इत्) ही (राजा) प्रकाश करने वाला (बभूव) होता है (यः) तथा जो (अस्य) इस (द्विपदः) दो-दो पग वाले मनुष्यादि और (चतुष्पदः) चार-चार पग वाले गौ आदि पशुरूप जगत् का (ईशे) प्रकाश करता है, उस (कस्मै) सुख करने हारे (देवाय) प्रकाशक जगदीश्वर के लिये (हविषा) ग्रहण करने योग्य पदार्थ वा व्यवहार से (विधेम) सेवन करें, वैसे तुम लोग भी अनुष्ठान किया करो॥११॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो सूर्य न हो तो स्थावर वृक्ष आदि और जङ्गम मनुष्यादि जगत् अपना-अपना काम देने को समर्थ न हो। जो सब से बड़ा, सब का प्रकाश करने वाला और ऐश्वर्य की प्राप्ति का हेतु है, वह ईश्वर सब को युक्ति के साथ सेवने योग्य है॥११॥

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