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  • यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 19
    ऋषिः - अग्निर्ऋषिः देवता - इडादयो लिङ्गोक्ता देवताः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
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    ति॒स्रो दे॒वीर्ब॒र्हिरेदꣳ स॑द॒न्त्विडा॒ सर॑स्वती॒ भार॑ती। म॒ही गृ॑णा॒ना॥१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ति॒स्रः। दे॒वीः। ब॒र्हिः। आ। इ॒दम्। स॒द॒न्तु॒। इडा॑। सर॑स्वती। भार॑ती। म॒ही। गृ॒णा॒ना ॥१९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तिस्रो देवीर्बर्हिरिदँ सदन्त्विडा सरस्वती भारती । मही गृणाना ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    तिस्रः। देवीः। बर्हिः। आ। इदम्। सदन्तु। इडा। सरस्वती। भारती। मही। गृणाना॥१९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 27; मन्त्र » 19
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    पदार्थ -
    हे मनुष्यो! तुम लोग जो (मही) बड़ी (गृणाना) स्तुति करती हुई (इडा) स्तुति करने योग्य (सरस्वती) प्रशस्त विज्ञान वाली और (भारती) सब शास्त्रों को धारण करने हारी जो (तिस्रः) तीन (देवीः) चाहने योग्य वाणी (इदम्) इस (बर्हिः) अन्तरिक्ष को (आ, सदन्तु) अच्छे प्रकार प्राप्त हों, उन तीनों प्रकार की वाणियों को सम्यक् जानो॥१९॥

    भावार्थ - जो मनुष्य व्यवहार में चतुर सब शास्त्र की विद्याओं से युक्त सत्यादि व्यवहारों को धारण करने हारी वाणी को प्राप्त हों, वे स्तुति के योग्य हुए महान् होवें॥१९॥

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