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  • यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 38
    ऋषिः - शंयुर्बार्हस्पत्य ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - स्वराड्बृहती स्वरः - मध्यमः
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    स त्वं न॑श्चित्र वज्रहस्त धृष्णु॒या म॒ह स्त॑वा॒नोऽअ॑द्रिवः।गामश्व॑ꣳ र॒थ्यमिन्द्र॒ संकि॑र स॒त्रा वाजं॒ न जि॒ग्युषे॑॥३८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः। त्वम्। नः॒। चि॒त्र॒। व॒ज्र॒ह॒स्तेति॑ वज्रऽहस्त। धृ॒ष्णु॒येति॑ धृष्णु॒ऽया। म॒हः। स्त॒वा॒नः। अ॒द्रि॒व॒ इत्य॑द्रिऽवः। गाम्। अश्व॑म्। र॒थ्य᳖म्। इ॒न्द्र॒। सम्। कि॒र॒। स॒त्रा। वाज॑म्। न। जि॒ग्युषे॑ ॥३८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स त्वन्नश्चित्र वज्रहस्त धृष्णुया मह स्तवानोऽअद्रिवः । गामश्वँ रथ्यमिन्द्र सङ्किर सत्रा वाजन्न जिग्युषे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सः। त्वम्। नः। चित्र। वज्रहस्तेति वज्रऽहस्त। धृष्णुयेति धृष्णुऽया। महः। स्तवानः। अद्रिव इत्यद्रिऽवः। गाम्। अश्वम्। रथ्यम्। इन्द्र। सम्। किर। सत्रा। वाजम्। न। जिग्युषे॥३८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 27; मन्त्र » 38
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    पदार्थ -
    हे (चित्र) आश्चर्यस्वरूप (वज्रहस्त) वज्र हाथ में लिये (अद्रिवः) प्रशस्त पत्थर के बने हुए वस्तुओं वाले (इन्द्र) शत्रुनाशक विद्वन्! (धृष्णुया) ढीठता से (महः) बहुत (स्तवानः) स्तुति करते हुए (सः) सो पूर्वोक्त (त्वम्) आप (जिग्युषे) जय करने वाले पुरुष के लिए तथा (नः) हमारे लिये (सत्रा) सत्य (वाजम्) विज्ञान के (न) तुल्य (गाम्) बैल तथा (रथ्यम्) रथ के योग्य (अश्वम्) घोड़े को (सं किर) सम्यक् प्राप्त कीजिये॥३८॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे मेघसम्बन्धी सूर्य वर्षा से सब को सम्बद्ध करता है, वैसे विद्वान् सत्य के विज्ञान से सब के ऐश्वर्य को प्रकाशित करता है॥३८॥

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