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  • यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 20
    ऋषिः - अग्निर्ऋषिः देवता - त्वष्टा देवता छन्दः - निचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः
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    तन्न॑स्तु॒रीप॒मद्भु॑तं पुरु॒क्षु त्वष्टा॑ सु॒वीर्य॑म्। रा॒यस्पोषं॒ विष्य॑तु॒ नाभि॑म॒स्मे॥२०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम्। नः॒। तु॒रीप॑म्। अद्भु॑तम्। पु॒रु॒क्षु। त्वष्टा॑। सु॒वीर्य॒मिति॑ सु॒ऽवीर्य॑म्। रा॒यः। पोष॑म्। वि। स्य॒तु॒। नाभि॑म्। अ॒स्मे इत्य॒स्मे ॥२० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तन्नस्तुरीपमद्भुतम्पुरुक्षु त्वष्टा सुवीर्यम् । रायस्पोषँविष्यतु नाभिमस्मे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    तम्। नः। तुरीपम्। अद्भुतम्। पुरुक्षु। त्वष्टा। सुवीर्यमिति सुऽवीर्यम्। रायः। पोषम्। वि। स्यतु। नाभिम्। अस्मे इत्यस्मे॥२०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 27; मन्त्र » 20
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    पदार्थ -
    (त्वष्टा) विद्या से प्रकाशित ईश्वर (अस्मे) हमारे (नाभिम्) मध्यप्रदेश के प्रति (तुरीपम्) शीघ्रता को प्राप्त होने वाले (अद्भुतम्) आश्चर्यरूप गुण, कर्म और स्वभावों से युक्त (पुरुक्षु) बहुत पदार्थों में बसने वाले (सुवीर्यम्) सुन्दर बलयुक्त (तम्) उस प्रसिद्ध (रायः) धन की (पोषम्) पुष्टि को देवे और (नः) हम लोगों को दुःख से (वि, स्यतु) छुड़ावे॥२०॥

    भावार्थ - हे मनुष्यो! जो शीघ्रकारी आश्चर्यरूप बहुतों में व्यापक धन वा बल है, उस को तुम लोग ईश्वर की प्रार्थना से प्राप्त होके आनन्दित होओ॥२०॥

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