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  • यजुर्वेद - अध्याय 37/ मन्त्र 16
    ऋषिः - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः देवता - ईश्वरो देवता छन्दः - भुरिग्बृहती स्वरः - मध्यमः
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    ध॒र्त्ता दि॒वो वि भा॑ति॒ तप॑सस्पृथि॒व्यां ध॒र्त्ता दे॒वो दे॒वाना॒मम॑र्त्यस्तपो॒जाः।वाच॑म॒स्मे नि य॑च्छ देवा॒युव॑म्॥१६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ध॒र्त्ता। दि॒वः। वि। भा॒ति॒। तप॑सः। पृ॒थि॒व्याम्। ध॒र्त्ता। दे॒वः। दे॒वाना॑म्। अम॑र्त्यः। त॒पो॒जा इति॑ तपः॒ऽजाः ॥ वाच॑म्। अ॒स्मे इत्य॒स्मे। नि। य॒च्छ॒। दे॒वा॒युव॑म्। दे॒व॒युव॒मिति॑ देव॒ऽयुव॑म् ॥१६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    धर्ता दिवो विभाति तपसस्पृथिव्यान्धर्ता देवो देवानाममर्त्यस्तपोजाः । वाचमस्मे नि यच्छ देवायुवम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    धर्त्ता। दिवः। वि। भाति। तपसः। पृथिव्याम्। धर्त्ता। देवः। देवानाम्। अमर्त्यः। तपोजा इति तपःऽजाः॥ वाचम्। अस्मे इत्यस्मे। नि। यच्छ। देवायुवम्। देवयुवमिति देवऽयुवम्॥१६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 37; मन्त्र » 16
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    पदार्थ -
    हे विद्वन्! जो (पृथिव्याम्) आकाश में (तपसः) सबको तपानेवाले (दिवः) प्रकाशमय सूर्य्य आदि का (धर्त्ता) धारणकर्त्ता जो (तपोजाः) तप से प्रकट होनेवाला (अमर्त्यः) मरणधर्मरहित (देवः) प्रकाशस्वरूप (देवानाम्) पृथिव्यादि तेंतीस देवों का (धर्त्ता) धारणकर्त्ता जगदीश्वर (वि, भाति) विशेषकर प्रकाशित होता है, उसके विज्ञान से (अस्मे) हमारे लिये (देवायुवम्) दिव्यगुणवाले पृथिव्यादि वा विद्वानों को सङ्गत करनेवाली (वाचम्) वाणी को (नि, यच्छ) निरन्तर दीजिये॥१६॥

    भावार्थ - हे विद्वान् लोगो! जो परमेश्वर सबका धर्त्ता, प्रकाशक, तप से विशेषकर जानने योग्य है, उसको जाननेवाली विद्या को हमारे लिये देओ॥१६॥

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