यजुर्वेद - अध्याय 4/ मन्त्र 20
ऋषिः - वत्स ऋषिः
देवता - वाग्विद्युतौ देवते
छन्दः - साम्नी जगती,भूरिक् आर्षी उष्णिक्
स्वरः - निषादः
14
अनु॑ त्वा मा॒ता म॑न्यता॒मनु॑ पि॒ताऽनु भ्राता॒ सग॒र्भ्योऽनु॒ सखा॒ सयू॑थ्यः। सा दे॑वि दे॒वमच्छे॒हीन्द्रा॑य॒ सोम॑ꣳ रु॒द्रस्त्वा॑वर्त्तयत् स्वस्ति सोम॑सखा॒ पुन॒रेहि॑॥२०॥
स्वर सहित पद पाठअनु॑। त्वा॒। मा॒ता। म॒न्य॒ता॒म्। अनु॑। पि॒ता। अनु॑। भ्राता॑। सग॑र्भ्य॒ इति॒ सऽग॑र्भ्यः। अनु॑। सखा॑। सयू॑थ्य॒ इति॒ सऽयू॑थ्यः। सा। दे॒वि॒। दे॒वम्। अच्छ॑। इ॒हि॒। इन्द्रा॑य। सोम॑म्। रु॒द्रः। त्वा॒। आ। व॒र्त्त॒य॒तु॒। स्व॒स्ति॑। सोम॑स॒खेति॒ सोम॑ऽसखा। पुनः॑। आ। इ॒हिः॒ ॥२०॥
स्वर रहित मन्त्र
अनु त्वा माता मन्यतामनु पितानु भ्राता सगर्भ्या नु सखा सयूथ्यः । सा देवि देवमच्छेहीन्द्राय सोमँ रुद्रस्त्वा वर्तयतु स्वस्ति सोमसखा पुनरेहि ॥
स्वर रहित पद पाठ
अनु। त्वा। माता। मन्यताम्। अनु। पिता। अनु। भ्राता। सगर्भ्य इति सऽगर्भ्यः। अनु। सखा। सयूथ्य इति सऽयूथ्यः। सा। देवि। देवम्। अच्छ। इहि। इन्द्राय। सोमम्। रुद्रः। त्वा। आ। वर्त्तयतु। स्वस्ति। सोमसखेति सोमऽसखा। पुनः। आ। इहिः॥२०॥
विषय - फिर वह वाणी और बिजुली कैसी हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥
पदार्थ -
हे मनुष्य! जैसे (रुद्रः) परमेश्वर वा ४४ चवालीस वर्ष पर्यन्त अखण्ड ब्रह्मचर्य्याश्रम सेवन से पूर्ण विद्यायुक्त विद्वान् (त्वा) तुझको जिस वाणी वा बिजुली तथा (सोमम्) उत्तम पदार्थसमूह और (स्वस्ति) सुख को (इन्द्राय) परमैश्वर्य्य की प्राप्ति के लिये (आवर्त्तयतु) प्रवृत्त करे और जो (सा) वह (सोमसखा) विद्याप्रकाशयुक्त वाणी और (देवि) दिव्यगुणयुक्त बिजुली (देवम्) उत्तम धर्मात्मा विद्वान् को प्राप्त होती है, वैसे उसको तू (पुनः) बार-बार (अच्छ) अच्छे प्रकार (इहि) प्राप्त हो और इसको ग्रहण करने के लिये (त्वा) तुझ को (माता) उत्पन्न करने वाली जननी (अनुमन्यताम्) अनुमति अर्थात् आज्ञा देवे, इसी प्रकार (पिता) उत्पन्न करने वाला जनक (सगर्भ्यः) तुल्य गर्भ में होने वाला (भ्राता) भाई और (सयूथ्यः) समूह में रहने वाला (सखा) मित्र ये सब प्रसन्नता पूर्वक आज्ञा देवें, उसको तू (पुनरेहि) अत्यन्त पुरुषार्थ करके बारं-बार प्राप्त हो॥२०॥
भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। प्रश्नः—मनुष्यों को परस्पर किस प्रकार वर्त्तना चाहिये? उत्तरः—जैसे धर्मात्मा, विद्वान्, माता, पिता, भाई, मित्र आदि सत्यव्यवहार में प्रवृत्त हों, वैसे पुत्रादि और जैसे विद्वान् धार्मिक पुत्रादि धर्मयुक्त व्यवहार में वर्त्तें, वैसे माता पिता आदि को भी वर्त्तना चाहिये॥२०॥
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