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  • यजुर्वेद - अध्याय 9/ मन्त्र 8
    ऋषिः - बृहस्पतिर्ऋषिः देवता - प्रजापतिर्देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    वात॑रꣳहा भव वाजिन् यु॒ज्यमा॑न॒ऽइन्द्र॑स्येव॒ दक्षि॑णः श्रि॒यैधि॑। यु॒ञ्जन्तु॑ त्वा म॒रुतो॑ वि॒श्ववे॑दस॒ऽआ ते॒ त्वष्टा॑ प॒त्सु ज॒वं द॑धातु॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वात॑रꣳहा॒ इति वात॑ऽरꣳहाः। भ॒व॒। वाजि॑न्। युज्यमा॑नः। इन्द्र॑स्ये॒वेतीन्द्र॑स्यऽइव। दक्षि॑णः। श्रि॒या। ए॒धि॒। यु॒ञ्जन्तु॑। त्वा॒। म॒रुतः॑। वि॒श्ववे॑दस॒ इति॑ वि॒श्वऽवे॑दसः। आ। ते॒। त्वष्टा॑। प॒त्स्विति॑ प॒त्ऽसु। ज॒वम्। द॒धा॒तु॒ ॥८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वातरँहा भव वाजिन्युज्यमान इन्द्रस्येव दक्षिणः श्रियैधि । युञ्जन्तु त्वा मरुतो विश्ववेदस आ ते त्वष्टा पत्सु जवन्दधातु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वातरꣳहा इति वातऽरꣳहाः। भव। वाजिन्। युज्यमानः। इन्द्रस्येवेतीन्द्रस्यऽइव। दक्षिणः। श्रिया। एधि। युञ्जन्तु। त्वा। मरुतः। विश्ववेदस इति विश्वऽवेदसः। आ। ते। त्वष्टा। पत्स्विति पत्ऽसु। जवम्। दधातु॥८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 9; मन्त्र » 8
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    पदार्थ -
    हे (वाजिन्) शास्त्रोक्त क्रियाकुशलता के प्रशस्त बोध से युक्त राजन्! जिस (त्वा) आप को (विश्ववेदसः) समस्त विद्याओं के जाननेहारे (मरुतः) विद्वान् लोग राज्य और शिल्पविद्याओं के कार्य्यों में (युञ्जन्तु) युक्त और (त्वष्टा) वेगादि गुणविद्या का जाननेहारा मनुष्य (ते) आपके (पत्सु) पगों में (जवम्) वेग को (आदधातु) अच्छे प्रकार धारण करे। वह आप (वातरंहाः) वायु के समान वेग वाले (भव) हूजिये और (युज्यमानः) सावधान होके (दक्षिणः) प्रशंसित धर्म से चलने के बल से युक्त होके (इन्द्रस्येव) परम ऐश्वर्य्य वाले राजा के समान (श्रिया) शोभायुक्त राज्य सम्पत्ति वा राणी के सहित (एधि) वृद्धि को प्राप्त हूजिये॥८॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। राजसम्बन्धी स्त्री-पुरुषो! आप लोग अभिमानरहित और निर्मत्सर अर्थात् दूसरों की उन्नति देखकर प्रसन्न होने वाले होकर विद्वानों के साथ मिल के राजधर्म की रक्षा किया करो तथा विमानादि यानों में बैठ के अपने अभीष्ट देशों में जा जितेन्द्रिय हो और प्रजा को निरन्तर प्रसन्न कर के श्रीमान् हुआ कीजिये॥८॥

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