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अथर्ववेद > काण्ड 15 > सूक्त 5

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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 5/ मन्त्र 16
    सूक्त - रुद्र देवता - द्विपदा प्राजापत्या अनुष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    नास्य॑ प॒शून्न स॑मा॒नान्हि॑नस्ति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न । अ॒स्य॒ । प॒शून् । न । स॒मा॒नम् । हि॒न॒स्ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥५.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नास्य पशून्न समानान्हिनस्ति य एवं वेद ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    न । अस्य । पशून् । न । समानम् । हिनस्ति । य: । एवम् । वेद ॥५.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 5; मन्त्र » 16

    पदार्थ -
    (हिनस्ति) कष्ट देताहै, (न)(अस्य) उस [विद्वान्] के (पशून्) प्राणियों को और (न) न [उसके] (समानान्) तुल्य गुणवालों को [कष्ट देता है], (यः) जो [विद्वान्] (एवम्) ऐसे वाव्यापक [व्रात्य परमात्मा] को (वेद) जानता है ॥१६॥

    भावार्थ - मन्त्र १-३ के समान है॥१४, १५, १६॥

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