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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 132

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 132/ मन्त्र 10
    सूक्त - देवता - प्रजापतिः छन्दः - आसुरी जगती सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    यदी॒यं ह॑न॒त्कथं॑ हनत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यदि॑ । इ॒यम् । ह॑न॒त् । कथम् । हनत् ॥१३२.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदीयं हनत्कथं हनत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यदि । इयम् । हनत् । कथम् । हनत् ॥१३२.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 132; मन्त्र » 10

    पदार्थ -
    (यदि) जो (इयम्) यह [प्रजा, पुरुष वा स्त्री] (हनत्) बजावे, (कथम्) कैसे (हनत्) बजावे ॥१०॥

    भावार्थ - चुने हुए विद्वान् मनुष्य और विदुषी स्त्रियाँ संसार में उत्तम उत्तम बाजों के साथ वेद-विद्या का गान करके आत्मा और शरीर की बल बढ़ानेवाली चमत्कारी क्रियाओं का प्रकाश करें ॥८-१२॥

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