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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 132

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 132/ मन्त्र 15
    सूक्त - देवता - प्रजापतिः छन्दः - याजुषी गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    द्वौ वा॒ ये शि॑शवः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द्वौ । वा॑ । ये । शिशव: ॥१३२.१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    द्वौ वा ये शिशवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    द्वौ । वा । ये । शिशव: ॥१३२.१५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 132; मन्त्र » 15

    पदार्थ -
    (हिरण्यः) हिरण्य [तेजोमय], (वा) और (द्वौ) दो (नीलशिखण्डवाहनः) नीलशिखण्ड [नीलों निधियों वा निवास स्थानों का पहुँचानेवाला] तथा वाहन [सब का लेचलनेवाला] है, (इति) ऐसा (ये शिशवः) बालक हैं, (एके) वे कोई कोई (अब्रवीत्) कहते हैं ॥१४-१६॥

    भावार्थ - परमात्मा अपने अनन्त गुण, कर्म, स्वभाव के कारण नामों की गणना में नहीं आ सकता है, जो मनुष्य उसके केवल “हिरण्य” आदि नाम बताते हैं, वे बालक के समान थोड़ी बुद्धिवाले हैं ॥१३-१६॥

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