अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 132/ मन्त्र 11
दे॒वी ह॑न॒त्कुह॑नत् ॥
स्वर सहित पद पाठदे॒वी । ह॑न॒त् । कुह॑नत् ॥१३२.११॥
स्वर रहित मन्त्र
देवी हनत्कुहनत् ॥
स्वर रहित पद पाठदेवी । हनत् । कुहनत् ॥१३२.११॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 132; मन्त्र » 11
विषय - परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पदार्थ -
(देवी) देवी [उत्तम प्रजा, मनुष्य वा स्त्री] (पर्यागारम्) घर-घर पर (पुनःपुनः) बार-बार (हनत्) बजावे और (कुहनत्) चमत्कार दिखावे ॥११, १२॥
भावार्थ - चुने हुए विद्वान् मनुष्य और विदुषी स्त्रियाँ संसार में उत्तम उत्तम बाजों के साथ वेद-विद्या का गान करके आत्मा और शरीर की बल बढ़ानेवाली चमत्कारी क्रियाओं का प्रकाश करें ॥८-१२॥
टिप्पणी -
११−(देवी) दिव्यगुणवती प्रजा (हनत्) (कुहनत्) कुह विस्मापने। विस्मापयेत्। चमत्कारं कुर्यात् ॥