अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 132/ मन्त्र 8
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
क ए॑षां॒ कर्क॑री लिखत् ॥
स्वर सहित पद पाठक: । ए॑षा॒म् । कर्क॑री । लिखत् ॥१३२.८॥
स्वर रहित मन्त्र
क एषां कर्करी लिखत् ॥
स्वर रहित पद पाठक: । एषाम् । कर्करी । लिखत् ॥१३२.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 132; मन्त्र » 8
विषय - परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पदार्थ -
(कः) कौन (एषाम्) इनके बीच (कर्करी) कर्करी [झारी जलपात्र, वा जलतरंग आदि बाजा] लिखत्) छोड़े [बजावे] ॥८॥
भावार्थ - चुने हुए विद्वान् मनुष्य और विदुषी स्त्रियाँ संसार में उत्तम उत्तम बाजों के साथ वेद-विद्या का गान करके आत्मा और शरीर की बल बढ़ानेवाली चमत्कारी क्रियाओं का प्रकाश करें ॥८-१२॥
टिप्पणी -
८−(कः) (एषाम्) मनुष्याणां मध्ये (कर्करी) अर्त्तिकमिभ्रमि०। उ० ३।१३२। सौत्रो धातुः, कर्क हासे-अरप्रत्ययः, यद्वा, कर्कं हासं राति, रा दाने-क, गौरादित्वात् ङीष्, विभक्तेर्लुक्। कर्करीम्। सनालजलपात्रम्। जलतरङ्गादिवाद्यम् (लिखत्) लिख अक्षरविन्यासे। अक्षरविन्यासरीत्या वादयेत् ॥