अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 132/ मन्त्र 3
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
क॑र्करि॒को निखा॑तकः ॥
स्वर सहित पद पाठक॒र्क॒रि॒क: । निखा॑तक: ॥१३२.३॥
स्वर रहित मन्त्र
कर्करिको निखातकः ॥
स्वर रहित पद पाठकर्करिक: । निखातक: ॥१३२.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 132; मन्त्र » 3
विषय - परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पदार्थ -
[वह परमात्मा] (कर्करिकः) बनानेवाला (निखातकः) दृढ़ जमा हुआ है ॥३॥
भावार्थ - वह ब्रह्म निराधार अकेला होकर सबका आधार और बनानेवाला है, वायु आदि पदार्थ उसकी आज्ञा में चलते हैं। सब मनुष्य उसकी उपासना करें ॥१-४॥
टिप्पणी -
३−(कर्करिकः) फर्फरीकादयश्च। उ० ४।२०। डुकृञ् करणे-ईकन्, कर्करादेशः, ईकारस्य इकारः। कर्ता। रचयिता (निखातकः) म० २। दृढीकृत्य स्थापितः ॥