Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 137

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 137/ मन्त्र 9
    सूक्त - तिरश्चीराङ्गिरसो द्युतानो वा देवता - इन्द्राबृहस्पतिः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त १३७

    अध॑ द्र॒प्सो अं॑शु॒मत्या॑ उ॒पस्थेऽधा॑रयत्त॒न्वं तित्विषा॒णः। विशो॒ अदे॑वीर॒भ्या॒चर॑न्ती॒र्बृह॒स्पति॑ना यु॒जेन्द्रः॑ ससाहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अध॑ । द्र॒प्स: । अं॒शु॒ऽमत्या॑: । उ॒पऽस्थे॑ । अधा॑रयत् । त॒न्व॑म् । ति॒त्वि॒षा॒ण: ॥ विश॑: । अदे॑वी: । अ॒भि । आ॒ऽचर॑न्ती: । बृह॒स्पत‍ि॑ना ॥ यु॒जा । इन्द्र॑: । स॒स॒हे॒ ॥१३७.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अध द्रप्सो अंशुमत्या उपस्थेऽधारयत्तन्वं तित्विषाणः। विशो अदेवीरभ्याचरन्तीर्बृहस्पतिना युजेन्द्रः ससाहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अध । द्रप्स: । अंशुऽमत्या: । उपऽस्थे । अधारयत् । तन्वम् । तित्विषाण: ॥ विश: । अदेवी: । अभि । आऽचरन्ती: । बृहस्पत‍िना ॥ युजा । इन्द्र: । ससहे ॥१३७.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 137; मन्त्र » 9

    पदार्थ -
    (अध) फिर (तित्विषाणः) भड़कीले (द्रप्सः) घमण्डी ने (अंशुमत्याः) विभागवाली [सीमावाली नदी] के (उपस्थे) समीप में (तन्वम्) अपने शरीर को (अधारयत्) पुष्ट किया। [तव] (युजा) अपने मित्र, (बृहस्पतिना) बृहस्पति [बड़ी विद्याओं के स्वामी] के साथ (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े प्रतापी राजा] ने (अभि) सब ओर (आचरन्तीः) घूमती हुई, (अदेवीः) कुव्यवहारवाली (विशः) प्रजाओं को (ससाहे) जीत लिया ॥९॥

    भावार्थ - यदि शत्रु लोग बार-बार एकत्र होकर उपद्रव मचावें, नीतिकुशल राजा मित्रों का सहाय लेकर वैरियों को हरावे ॥९॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top