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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 24

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 24/ मन्त्र 3
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२४

    इन्द्र॑मि॒त्था गिरो॒ ममाच्छा॑गुरिषि॒ता इ॒तः। आ॒वृते॒ सोम॑पीतये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑म् । इ॒त्था । गिर॑: । मम॑ । अच्छ॑ । अ॒गु॒: । इ॒षि॒ता: । इ॒त: ॥ आ॒ऽवृते॑ । सोम॑ऽपीतये ॥२४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रमित्था गिरो ममाच्छागुरिषिता इतः। आवृते सोमपीतये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रम् । इत्था । गिर: । मम । अच्छ । अगु: । इषिता: । इत: ॥ आऽवृते । सोमऽपीतये ॥२४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 24; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (इत्था) इस प्रकार से (मम) मेरी (इषिताः) प्रेरणा की गयीं (गिरः) वाणियाँ (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष] को (सोमपीतये) सोमरस [उत्तम ओषधि] पीने के लिये (आवृते) घूमने को (अच्छ) अच्छे प्रकार (इतः) यहाँ से (अगुः) गयी हैं ॥३॥

    भावार्थ - विद्वान् लोग विद्वानों का सत्कार उत्तम रीति से करते रहें ॥३॥

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