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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 24

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 24/ मन्त्र 9
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२४

    त्वां सु॒तस्य॑ पी॒तये॑ प्र॒त्नमि॑न्द्र हवामहे। कु॑शि॒कासो॑ अव॒स्यवः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वाम् । सु॒तस्य॑ । पी॒तये॑ । प्र॒त्नम् । इ॒न्द्र॒ । ह॒वा॒म॒हे॒ ॥ कु॒शि॒कास॑: । अ॒व॒स्यव॑: ॥२४.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वां सुतस्य पीतये प्रत्नमिन्द्र हवामहे। कुशिकासो अवस्यवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वाम् । सुतस्य । पीतये । प्रत्नम् । इन्द्र । हवामहे ॥ कुशिकास: । अवस्यव: ॥२४.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 24; मन्त्र » 9

    पदार्थ -
    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष] (त्वां प्रत्नम्) तुझ पुराने का (सुतस्य) सिद्ध किये हुए रस के (पीतये) पीने के लिये (कुशिकासः) मिलनेवाले, (अवस्यवः) रक्षा चाहनेवाले हम (हवामहे) बुलाते हैं ॥९॥

    भावार्थ - मनुष्य अनुभवी पुराने बुद्धिमानों से आदर करके शिक्षा लेवें ॥९॥

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