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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 24

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 24/ मन्त्र 6
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२४

    वि॒द्मा हि त्वा॑ धनंज॒यं वाजे॑षु दधृ॒षं क॑वे। अधा॑ ते सु॒म्नमी॑महे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒द्म । हि । त्वा॒ । ध॒न॒म्ऽज॒यम् । वाजे॑षु । द॒धृ॒षम् । क॒वे॒ ॥ अध॑ । ते॒ । सु॒म्नम् । ई॒म॒हे॒ ॥२४.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विद्मा हि त्वा धनंजयं वाजेषु दधृषं कवे। अधा ते सुम्नमीमहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विद्म । हि । त्वा । धनम्ऽजयम् । वाजेषु । दधृषम् । कवे ॥ अध । ते । सुम्नम् । ईमहे ॥२४.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 24; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    (कवे) हे विद्वान् ! (त्वा) तुझको (हि) ही (धनंजयम्) धन जीतनेवाला और (वाजेषु) सङ्ग्रामों में (दधृषम्) अत्यन्त निर्भय (विद्म) हम जानते हैं। (अध) इसलिये (ते) तेरे लिये (सुम्नम्) सुख की (ईमहे) हम प्रार्थना करते हैं ॥६॥

    भावार्थ - जो मनुष्य धनी, शूर और परोपकारी होवे, उसके लिये सुख पहुँचाने को सब प्रयत्न करें ॥६॥

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