Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 70

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 70/ मन्त्र 12
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७०

    स नो॑ वृषन्न॒मुं च॒रुं सत्रा॑दाव॒न्नपा॑ वृधि। अ॒स्मभ्य॒मप्र॑तिष्कुतः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । न॒: । वष॒न् । अ॒मुम् । च॒रुम् । सत्रा॑ऽदावन् । अप॑ । वृ॒धि॒ ॥ अ॒स्मभ्य॑म् । अप्र॑तिऽस्कुत: ॥७०.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स नो वृषन्नमुं चरुं सत्रादावन्नपा वृधि। अस्मभ्यमप्रतिष्कुतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । न: । वषन् । अमुम् । चरुम् । सत्राऽदावन् । अप । वृधि ॥ अस्मभ्यम् । अप्रतिऽस्कुत: ॥७०.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 70; मन्त्र » 12

    पदार्थ -
    (वृषन्) हे सुख बरसानेवाले ! (सत्रादावन्) हे सत्य ज्ञान देनेवाले परमेश्वर ! (अप्रतिष्कुतः) बे-रोक गतिवाला (सः) सो तू (नः) हमारे लिये, (अस्मभ्यम्) हमार लिये (अमुम्) उस (चरुम्) मेघ के समान ज्ञान को (अप वृधि) खोल दे ॥१२॥

    भावार्थ - मनुष्य ईश्वर से मेघसमान उपकारी सत्यज्ञान को प्राप्त करके सुखी होवे ॥१२॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top