Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 70

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 70/ मन्त्र 19
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७०

    इन्द्र॒ त्वोता॑स॒ आ व॒यं वज्रं॑ घ॒ना द॑दीमहि। जये॑म॒ सं यु॒धि स्पृधः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑ । त्वाऽऊ॑तास: । आ । व॒यम् । वज्र॑म् । घ॒ना । द॒दी॒म॒हि॒ ॥ जये॑म । सम् । यु॒धि । स्पृध॑: ॥७०.१९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र त्वोतास आ वयं वज्रं घना ददीमहि। जयेम सं युधि स्पृधः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र । त्वाऽऊतास: । आ । वयम् । वज्रम् । घना । ददीमहि ॥ जयेम । सम् । युधि । स्पृध: ॥७०.१९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 70; मन्त्र » 19

    पदार्थ -
    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मन्] (त्वोतासः) तुझसे रक्षा किये गये (वयम्) हम (वज्रम्) वज्र [बिजुली और अग्नि के शस्त्रों] और (घना) घनों [मारने के तलवार आदि हथियारों] को (आ ददीमहि) ग्रहण करें और (युधि) युद्ध में (स्पृधः) ललकारते हुए शत्रुओं को (सम्) ठीक-ठीक (जयेम) जीतें ॥१९॥

    भावार्थ - मनुष्य परमात्मा की शरण में रहकर वीर सेना और पुष्कल युद्धसामग्री लेकर शत्रुओं को हरावें ॥१९॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top