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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 70

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 70/ मन्त्र 5
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - मरुद्गणः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७०

    अतः॑ परिज्म॒न्ना ग॑हि दि॒वो वा॑ रोच॒नादधि॑। सम॑स्मिन्नृञ्जते॒ गिरः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अत॑: । प॒रि॒ऽज्म॒न् । आ । ग॒हि॒ । दि॒व: । वा॒ । रो॒च॒नात् । अधि॑ ॥ सम् । अ॒स्मि॒न् । ऋ॒ञ्ज॒ते॒ । गिर॑: ॥७०.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अतः परिज्मन्ना गहि दिवो वा रोचनादधि। समस्मिन्नृञ्जते गिरः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अत: । परिऽज्मन् । आ । गहि । दिव: । वा । रोचनात् । अधि ॥ सम् । अस्मिन् । ऋञ्जते । गिर: ॥७०.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 70; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    (अतः) इसलिये, (परिज्मन्) हे सर्वत्र गतिवाले शूर ! (दिवः) विजय की इच्छा से (वा) और (रोचनात्) प्रीति भाव से (अधि) ऊपर (आ गहि) आ, (अस्मिन्) इस [वचन] में (गिरः) हमारी स्तुतियाँ (सम्) ठीक-ठीक (ऋञ्जते) सिद्ध होती हैं ॥॥

    भावार्थ - पूर्वोक्त प्रकार से आवश्यकता जताकर श्रेष्ठ प्रजागण धीर-वीर पुरुष को उत्तम कर्मों में प्रवृत्त करें ॥॥

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