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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 70

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 70/ मन्त्र 14
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७०

    वृषा॑ यू॒थेव॒ वंस॑गः कृ॒ष्टीरि॑य॒र्त्योज॑सा। ईशा॑नो॒ अप्र॑तिष्कुतः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वृषा॑ । यू॒थाऽइ॑व । वंस॑ग: । कृ॒ष्टी: । इ॒य॒र्ति॒ । ओज॑सा ॥ ईशा॑न: । अप्र॑त‍िऽस्फुत: ॥७०.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वृषा यूथेव वंसगः कृष्टीरियर्त्योजसा। ईशानो अप्रतिष्कुतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वृषा । यूथाऽइव । वंसग: । कृष्टी: । इयर्ति । ओजसा ॥ ईशान: । अप्रत‍िऽस्फुत: ॥७०.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 70; मन्त्र » 14

    पदार्थ -
    (वृषा) बलवान् बैल (यूथा इव) जैसे अपने झुण्डों को, [वैसे ही] (वंसगः) सेवनीय पदार्थों का पहुँचानेवाला, (अप्रतिष्कुतः) बे-रोक गतिवाला (ईशानः) परमेश्वर (ओजसा) अपने बल से (कृष्टीः) मनुष्यों को (इयर्ति) प्राप्त होता है ॥१४॥

    भावार्थ - जैसे बलवान् बैल अपने झुण्ड को वश में रखता है, वैसे ही परमात्मा सबमें व्यापकर मनुष्य आदि प्राणियों को अपने नियम में रखता है ॥१४॥

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