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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 71

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 71/ मन्त्र 2
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७१

    स॑मो॒हे वा॒ य आश॑त॒ नर॑स्तो॒कस्य॒ सनि॑तौ। विप्रा॑सो वा धिया॒यवः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒म्ऽओ॒हे । वा॒ । ये । आश॑त । नर॑: । तो॒कस्य॑ । सनि॑तौ ॥ विप्रा॑स: । वा॒ । धि॒या॒ऽयव॑: ॥७१.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    समोहे वा य आशत नरस्तोकस्य सनितौ। विप्रासो वा धियायवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सम्ऽओहे । वा । ये । आशत । नर: । तोकस्य । सनितौ ॥ विप्रास: । वा । धियाऽयव: ॥७१.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 71; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (ये) जो (नरः) नर [नेता लोग] (समोहे) सङ्ग्राम में (वा) और (तोकस्य) सन्तान के (सनितौ) सेवन [पोषण, अध्यापन आदि] में (आशत) लगे हैं, वे (विप्रासः) विद्वान् (वा) और (धियायवः) बुद्धि की कामनावाले हैं ॥२॥

    भावार्थ - मनुष्य साङ्ग्रामिक नीति से प्रजा की रक्षा और सामान्य प्रबन्ध से विद्या की वृद्धि करें ॥२॥

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