Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 93

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 93/ मन्त्र 4
    सूक्त - देवजामयः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-९३

    ई॒ङ्खय॑न्तीरप॒स्युव॒ इन्द्रं॑ जा॒तमुपा॑सते। भे॑जा॒नासः॑ सु॒वीर्य॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ई॒ङ्खय॑न्ती: । अ॒प॒स्युव॑: । इन्द्र॑म् । जा॒तम् । उप॑ । आ॒स॒ते॒ ॥ भे॒जा॒नास॑: । सु॒ऽवीर्य॑म् ॥९३.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ईङ्खयन्तीरपस्युव इन्द्रं जातमुपासते। भेजानासः सुवीर्यम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ईङ्खयन्ती: । अपस्युव: । इन्द्रम् । जातम् । उप । आसते ॥ भेजानास: । सुऽवीर्यम् ॥९३.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 93; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    (ईङ्खयन्तीः) चेष्टा करती हुई, (अपस्युवः) काम चाहनेवाली, (सुवीर्यम्) बड़े सामर्थ्य को (भेजानासः) सेवन करती हुई प्रजाएँ (जातम्) प्रकट हुए (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] की (उप आसते) उपासना करती हैं ॥४॥

    भावार्थ - यह सब पदार्थ परमेश्वर के नियम से चेष्टा करते हुए और अपने कर्तव्य करते हुए उस जगदीश्वर की आज्ञा में रहते हैं ॥४॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top