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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 93

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 93/ मन्त्र 7
    सूक्त - देवजामयः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-९३

    त्वमि॑न्द्र स॒जोष॑सम॒र्कं बि॑भर्षि बा॒ह्वोः। वज्रं॒ शिशा॑न॒ ओज॑सा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । इ॒न्द्र॒ । स॒ऽजोष॑सम् । अ॒र्कम् । ब‍ि॒भ॒र्षि॒ । बा॒ह्वो: ॥ वज्र॑म् । शिशा॑न: । ओज॑सा ॥९३.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वमिन्द्र सजोषसमर्कं बिभर्षि बाह्वोः। वज्रं शिशान ओजसा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । इन्द्र । सऽजोषसम् । अर्कम् । ब‍िभर्षि । बाह्वो: ॥ वज्रम् । शिशान: । ओजसा ॥९३.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 93; मन्त्र » 7

    पदार्थ -
    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमेश्वर] (ओजसा) पराक्रम से (वज्रम्) वज्र को (शिशानः) तीक्ष्ण करता हुआ (त्वम्) तू (सजोषसम्) प्रीतियुक्त [वा विचारवान्] (अर्कम्) पूजनीय विद्वान् को (बाह्वोः) दोनों भुजाओं पर [जैसे] (बिभर्षि) धारण करता है ॥७॥

    भावार्थ - परमात्मा दुष्टों का नाश करता हुआ आज्ञाकारी विचारशील विद्वानों को अपने प्रेम की गोद में बिठाकर बढ़ाता है ॥७॥

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