Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 94

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 94/ मन्त्र 6
    सूक्त - कृष्णः देवता - इन्द्रः छन्दः - जगती सूक्तम् - सूक्त-९४

    पृथ॒क्प्राय॑न्प्रथ॒मा दे॒वहू॑त॒योऽकृ॑ण्वत श्रव॒स्यानि दु॒ष्टरा॑। न ये शे॒कुर्य॒ज्ञियां॒ नाव॑मा॒रुह॑मी॒र्मैव ते न्य॑विशन्त॒ केप॑यः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पृथ॑क् । प्र । आ॒य॒न् । प्र॒थ॒मा: । दे॒वऽहू॑तय: । अकृ॑ण्वत । श्र॒व॒स्या॑नि । दु॒स्तरा॑ ॥ न । ये । शे॒कु: । य॒ज्ञिया॑म् । नाव॑म् । आ॒ऽरुह॑म् । ई॒र्मा । ए॒व । ते । नि । अ॒वि॒श॒न्त॒ । केप॑य: ॥९४.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पृथक्प्रायन्प्रथमा देवहूतयोऽकृण्वत श्रवस्यानि दुष्टरा। न ये शेकुर्यज्ञियां नावमारुहमीर्मैव ते न्यविशन्त केपयः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पृथक् । प्र । आयन् । प्रथमा: । देवऽहूतय: । अकृण्वत । श्रवस्यानि । दुस्तरा ॥ न । ये । शेकु: । यज्ञियाम् । नावम् । आऽरुहम् । ईर्मा । एव । ते । नि । अविशन्त । केपय: ॥९४.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 94; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    (प्रथमाः) मुखिया, (देवहूतयः) विद्वानों के बुलानेवाले पुरुष (पृथक्) अलग-अलग [अर्थात् कोई वीरता, कोई विद्यावृद्धि आदि गुण से] (प्र) आगे (आयन्) गये हैं और उन्होंने (दुस्तरा) दुस्तरा [बड़े कठिन] (श्रवस्यानि) यश के कर्म (अकृण्वत) किये हैं। (ये) जो (यज्ञियाम्) यज्ञ [देवपूजा, संगतिकरण और दान] की (नावम्) नाव पर (न आरुहं शेकुः) नहीं चढ़ सके हैं, (ते) वे (केपयः) दुराचारी (ईर्मा) मार्ग में (एव) ही (नि अविशन्त) टिक रहे हैं ॥६॥

    भावार्थ - मनुष्य विद्वानों की शिक्षा से अनेक कठिन कामों को पूरा करके यश बढ़ावें, और दुष्कर्मियों के समान श्रेष्ठ कर्मों को छोड़कर निन्दनीय कर्मों में न पड़ें ॥६॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top