Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 96/ मन्त्र 22
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - यक्ष्मनाशनम् छन्दः - उष्णिग्गर्भा निचृदनुष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९६

    अ॒स्थिभ्य॑स्ते म॒ज्जभ्यः॒ स्नाव॑भ्यो ध॒मनि॑भ्यः। यक्ष्मं॑ पा॒णिभ्या॑म॒ङ्गुलि॑भ्यो न॒खेभ्यो॒ वि वृ॑हामि ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒स्थिभ्य॑: । ते॒ । म॒ज्जऽभ्य॑: । स्नाव॑ऽभ्य: । ध॒मनि॑ऽभ्य: ॥ यक्ष्म॑म् । पा॒णिऽभ्या॑म् । अ॒ङ्गुलि॑ऽभ्य: । न॒खेभ्य॑: । वि । वृ॒हा॒मि॒ । ते॒ ॥९६.२२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अस्थिभ्यस्ते मज्जभ्यः स्नावभ्यो धमनिभ्यः। यक्ष्मं पाणिभ्यामङ्गुलिभ्यो नखेभ्यो वि वृहामि ते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अस्थिभ्य: । ते । मज्जऽभ्य: । स्नावऽभ्य: । धमनिऽभ्य: ॥ यक्ष्मम् । पाणिऽभ्याम् । अङ्गुलिऽभ्य: । नखेभ्य: । वि । वृहामि । ते ॥९६.२२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 96; मन्त्र » 22

    पदार्थ -
    (ते) तेरे (अस्थिभ्यः) हड्डियों से, (मज्जभ्यः) मज्जा धातु [हड्डी के भीतर के रस] से, (स्नावभ्यः) सूक्ष्म नाड़ियों [वा पुट्ठों] से, और (धमनिभ्यः) स्थूल नाड़ियों से, और (ते) तेरे (पाणिभ्याम्) दोनों हाथों से, (अङ्गुलिभ्यः) अङ्गुलियों से और (नखेभ्यः) नखों से (यक्ष्मम्) क्षयी रोग को (वि वृहामि) मैं जड़ से उखाड़ता हूँ ॥२२॥

    भावार्थ - मनुष्य अपने शरीर के भीतरी धातुओं, नाड़ियों और हाथ आदि बाहिरी अङ्गों को यथायोग्य आहार-विहार से पुष्ट और स्वस्थ रक्खें, जिससे आत्मिक शक्ति सदा बढ़ती रहे ॥२२॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top