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अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 2

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 2/ मन्त्र 8
    सूक्त - वेनः देवता - आत्मा छन्दः - उपरिष्टाज्ज्योतिस्त्रिष्टुप् सूक्तम् - आत्मविद्या सूक्त

    आपो॑ व॒त्सं ज॒नय॑न्ती॒र्गर्भ॒मग्रे॒ समै॑रयन्। तस्यो॒त जाय॑मान॒स्योल्ब॑ आसीद्धिर॒ण्ययः॒ कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आप॑: । व॒त्सम् । ज॒नय॑न्ती: । गर्भ॑म् । अग्रे॑ । सम् । ऐ॒र॒य॒न् । तस्य॑ । उ॒त । जाय॑मानस्य । उल्ब॑: । आ॒सी॒त् । हि॒र॒ण्यय॑: । कस्मै॑ । दे॒वाय॑ । ह॒विषा॑ । वि॒धे॒म॒ ॥२.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आपो वत्सं जनयन्तीर्गर्भमग्रे समैरयन्। तस्योत जायमानस्योल्ब आसीद्धिरण्ययः कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आप: । वत्सम् । जनयन्ती: । गर्भम् । अग्रे । सम् । ऐरयन् । तस्य । उत । जायमानस्य । उल्ब: । आसीत् । हिरण्यय: । कस्मै । देवाय । हविषा । विधेम ॥२.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 2; मन्त्र » 8

    पदार्थ -
    (अग्रे) पहिले हि पहिले (वत्सम्) निवास स्थान संसार को वा बालक रूप संसार को (जनयन्तीः=०-न्त्यः) उत्पन्न करते हुए (आपः) ज़ल धाराओं [वा तन्मात्राओं] ने (गर्भम्) बालक [रूप संसार] को (समैरयन्) यथावत् प्रकट किया, (उत) और (तस्य) उस (जायमानस्य) उत्पन्न होते हुए [बालक, संसार] का (उल्बः) जरायु [गर्भ की झिल्ली] (हिरण्ययः) तेजोमय परमात्मा (आसीत्) था, इस (कस्मै) सुखदायक प्रजापति परमेश्वर की (देवाय) दिव्य गुण के लिये (हविषा) भक्ति के साथ (विधेम) हम सेवा किया करैं ॥८॥

    भावार्थ - जल [वा तन्मात्राओं] की उत्पादन शक्ति से यह संसार उत्पन्न हुआ है और सृष्टि का आदिकारण परमेश्वर है, जो सृष्टि को सब ओर से गर्भ की झिल्ली के समान ढके हुए है और बीज में भी उत्पादनशक्ति देनेवाला वही है-मन्त्र ६ देखो ॥८॥ यह मन्त्र कुछ भेद से ऋ० १०।१२१।७ और यजु० २७।२५ में है ॥ मनु भगवान् ने इस प्रकार कहा है-म० १।९। तदण्डमभवद्धैमं सहस्रांशुसमप्रभम्। तस्मिञ्जज्ञे स्वयं ब्रह्मा सर्वलोकपितामहः ॥ वह [बीज] सूर्य के समान प्रकाशवाला चमकीला अण्डा हो गया, उस [अण्डे] में ब्रह्मा [परमात्मा] सब लोकों का पितामह [दादा] अपने आप प्रकट हुआ [अर्थात् उसमें परमात्मा की महिमा जान पड़ी] ॥

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