अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 16/ मन्त्र 10
सूक्त - विश्वामित्रः
देवता - एकवृषः
छन्दः - साम्न्युष्णिक्
सूक्तम् - वृषरोगनाशमन सूक्त
यदि॑ दशवृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयदि॑ । द॒श॒ऽवृ॒ष: । असि॑ । सृ॒ज । अ॒र॒स: । अ॒सि॒ ॥१६.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
यदि दशवृषोऽसि सृजारसोऽसि ॥
स्वर रहित पद पाठयदि । दशऽवृष: । असि । सृज । अरस: । असि ॥१६.१०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 16; मन्त्र » 10
विषय - पुरुषार्थ का उपदेश।
पदार्थ -
(यदि) जो तू (दशवृषः) दस [दस बल अर्थात् दान, शील, क्षमा, वीर्य, ध्यान, प्रज्ञा, सेनायें, उपाय, दूत और ज्ञान] से ऐश्वर्यवान् (असि) है, (सृज) [सुख] उत्पन्न कर, [नहीं तो] तू (अरसः) निर्बल (असि) है ॥१०॥
भावार्थ - मनुष्य पूर्वोक्त दस प्रकार के बलों के अनुष्ठान से ऐश्वर्यवान् होवें ॥१०॥
टिप्पणी -
१०−(दशवृषः) दशभिर्बलैरैश्वर्यवान्। दानशीलक्षमावीर्यध्यानप्रज्ञा बलानि च। उपायः प्रणिधिर्ज्ञानं दशबुद्धिबलानि च−इति दश बलानि ॥