अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 16/ मन्त्र 3
सूक्त - विश्वामित्रः
देवता - एकवृषः
छन्दः - आसुर्यनुष्टुप्
सूक्तम् - वृषरोगनाशमन सूक्त
यदि॑ त्रिवृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयदि॑ । त्रि॒ऽवृ॒ष: । असि॑ । सृ॒ज । अ॒र॒स: । अ॒सि॒ ॥१६.३॥
स्वर रहित मन्त्र
यदि त्रिवृषोऽसि सृजारसोऽसि ॥
स्वर रहित पद पाठयदि । त्रिऽवृष: । असि । सृज । अरस: । असि ॥१६.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 16; मन्त्र » 3
विषय - पुरुषार्थ का उपदेश।
पदार्थ -
(यदि) जो तू (त्रिवृषः) तीन [सत्त्व, रज, और तम गुणों] पर ऐश्वर्यवान् (असि) है.... म० १ ॥३॥
भावार्थ - मनुष्य सत्त्व, रज, तम तीनों गुणों के विज्ञान से उन्नति करें ॥३॥
टिप्पणी -
३−(त्रिवृषः) त्रिगुणसत्त्वरजस्तमोविज्ञाने समर्थः ॥