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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 16

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 16/ मन्त्र 8
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - एकवृषः छन्दः - साम्न्युष्णिक् सूक्तम् - वृषरोगनाशमन सूक्त

    यद्य॑ष्टवृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यदि॑ । अ॒ष्ट॒ऽवृ॒ष: । असि॑ । सृ॒ज । अ॒र॒स: । अ॒सि॒ ॥१६.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यद्यष्टवृषोऽसि सृजारसोऽसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यदि । अष्टऽवृष: । असि । सृज । अरस: । असि ॥१६.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 16; मन्त्र » 8

    पदार्थ -
    (यदि) जो तू (अष्टवृषः) आठ [योग के अङ्गों, यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, और समाधि] में समर्थ (असि) है.... म० १ ॥८॥

    भावार्थ - मनुष्य योग के आठों अङ्गों में अभ्यास करने से अशुद्धि का नाश और ज्ञान का प्रकाश करके विवेक प्राप्त करें ॥८॥

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