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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 16

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 16/ मन्त्र 11
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - एकवृषः छन्दः - आसुरी सूक्तम् - वृषरोगनाशमन सूक्त

    यद्ये॑काद॒शोऽसि॒ सोऽपो॑दकोऽसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यदि॑ । ए॒का॒द॒श: । असि॑ । स: । अप॑ऽउदक: । अ॒सि॒ ॥१६.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यद्येकादशोऽसि सोऽपोदकोऽसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यदि । एकादश: । असि । स: । अपऽउदक: । असि ॥१६.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 16; मन्त्र » 11

    पदार्थ -
    (यदि) जो तू (एकादशः) ग्यारहवाँ [पूर्वोक्त दस से भिन्न पुरुषार्थहीन] (असि) है, (सः) वह तू (अपोदकः) वृद्धि सामर्थ्य रहित (असि) है ॥११॥

    भावार्थ - जो मनुष्य पूर्वोक्त दस मन्त्रों में कहे पुरुषार्थों को नहीं करता, वह पुरुषार्थहीन अपनी और दूसरों की वृद्धि नहीं कर सकता ॥११॥

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