अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 16/ मन्त्र 9
सूक्त - विश्वामित्रः
देवता - एकवृषः
छन्दः - साम्न्युष्णिक्
सूक्तम् - वृषरोगनाशमन सूक्त
यदि॑ नववृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयदि॑ । न॒व॒ऽवृ॒ष: । असि॑। सृ॒ज । अ॒र॒स: । अ॒सि॒ ॥१६.९॥
स्वर रहित मन्त्र
यदि नववृषोऽसि सृजारसोऽसि ॥
स्वर रहित पद पाठयदि । नवऽवृष: । असि। सृज । अरस: । असि ॥१६.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 16; मन्त्र » 9
विषय - पुरुषार्थ का उपदेश।
पदार्थ -
(यदि) जो तू (नववृषः) नव [अर्थात् नव द्वारवाले शरीर] से ऐश्वर्यवान् (असि) है.... म० १ ॥९॥
भावार्थ - शरीर में दो कान, दो आँखें, दो नथने, एक मुख, एक पायु, एक उपस्थेन्द्रिय नव छिद्र वा द्वार हैं, यथा, नवद्वारपुरे देही−गीता अ० ५ श्लो० १३। मनुष्य शरीर की शुद्धि रखने और उससे कष्ट सहने से ऐश्वर्यवान् हों ॥९॥
टिप्पणी -
९−(नववृषः) नवद्वारपुरेण शरीरेण ऐश्वर्यवान्। नवद्वारपुरे देही−गीता, अ० ५ श्लो० १३। द्वे श्रोत्रे, चक्षुषी नासिके च मुखमेकमिति ऊर्ध्वस्थानि सप्त, द्वे पायूपस्थेऽधः, इति नव छिद्ररूपाणि शरीरद्वाराणि ॥