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अथर्ववेद > काण्ड 9 > सूक्त 6 > पर्यायः 2

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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 6/ मन्त्र 11
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अतिथिः, विद्या छन्दः - भुरिक्साम्नीबृहती सूक्तम् - अतिथि सत्कार

    प्रा॑जाप॒त्यो वा ए॒तस्य॑ य॒ज्ञो वित॑तो॒ य उ॑प॒हर॑ति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्रा॒जा॒ऽप॒त्य: । वै । ए॒तस्य॑ । य॒ज्ञ: । विऽत॑त: । य: । उ॒प॒ऽहर॑ति ॥७.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्राजापत्यो वा एतस्य यज्ञो विततो य उपहरति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्राजाऽपत्य: । वै । एतस्य । यज्ञ: । विऽतत: । य: । उपऽहरति ॥७.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 6; पर्यायः » 2; मन्त्र » 11

    पदार्थ -
    (एतस्य) उस [गृहस्थ] का (एव) ही (प्राजापत्यः) प्रजापति परमात्मा की प्राप्ति करानेवाला [और प्रजापालक गृहस्थ का हितकारी] (यज्ञः) यज्ञ (विततः) विस्तृत [होता है], (यः) जो [अन्न] (उपहरति) दान करता है ॥११॥

    भावार्थ - अतिथियों का सत्कारी गृहस्थ संसार में कीर्तिमान् होता है ॥११॥ यह और आगे के दोनों मन्त्र स्वामी दयानन्दकृत संस्कारविधि संन्यासाश्रमप्रकरण में व्याख्यात हैं ॥

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