अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 6/ मन्त्र 3
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - अतिथिः, विद्या
छन्दः - आसुर्यनुष्टुप्
सूक्तम् - अतिथि सत्कार
उप॑ हरति ह॒वींष्या सा॑दयति ॥
स्वर सहित पद पाठउप॑ । ह॒र॒ति॒ । ह॒वींषि॑ । आ । सा॒द॒य॒ति॒ ॥७.३॥
स्वर रहित मन्त्र
उप हरति हवींष्या सादयति ॥
स्वर रहित पद पाठउप । हरति । हवींषि । आ । सादयति ॥७.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 6;
पर्यायः » 2;
मन्त्र » 3
विषय - अतिथि के सत्कार का उपदेश।
पदार्थ -
वह [गृहस्थ] (हवींषि) हवनद्रव्यों को (उप हरति) भेंट करता है और (आ सादयति) समीप लाता है ॥३॥
भावार्थ - गृहस्थ हवनद्रव्यों को लाकर संन्यासी से हवन का लाभ पूँछता है ॥३॥
टिप्पणी -
३−(उप हरति) समर्पयति (हवींषि) हवनद्रव्याणि (आ सादयति) समीपं प्रापयति ॥