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  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 58
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त

    अघ्न्ये॑ पद॒वीर्भ॑व ब्राह्म॒णस्या॒भिश॑स्त्या ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अघ्न्ये॑ । प॒द॒ऽवी: । भ॒व॒ । ब्रा॒ह्म॒णस्य॑ । अ॒भिऽश॑स्त्या ॥१०.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अघ्न्ये पदवीर्भव ब्राह्मणस्याभिशस्त्या ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अघ्न्ये । पदऽवी: । भव । ब्राह्मणस्य । अभिऽशस्त्या ॥१०.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 58

    Meaning -
    O inviolable Divine Cow, with the appreciation and praise of the Brahmana, be his firm foundation for stablility and his guide on the way forward to enlightenment and social progress.

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