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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 76
    ऋषिः - भिषगृषिः देवता - वैद्यो देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    श॒तं वो॑ऽअम्ब॒ धामा॑नि स॒हस्र॑मु॒त वो॒ रुहः॑। अधा॑ शतक्रत्वो यू॒यमि॒मं मे॑ऽअग॒दं कृ॑त॥७६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श॒तम्। वः॒। अ॒म्ब॒। धामा॑नि। स॒हस्र॑म्। उ॒त। वः॒। रुहः॑। अध॑। श॒त॒क्र॒त्व॒ इति॑ शतऽक्रत्वः। यू॒यम्। इ॒मम्। मे॒। अ॒ग॒द॒म्। कृ॒त॒ ॥७६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शतँ वोऽअम्ब धामानि सहस्रमुत वो रुहः । अधा शतक्रत्वो यूयमिमन्मे अगदङ्कृत॥


    स्वर रहित पद पाठ

    शतम्। वः। अम्ब। धामानि। सहस्रम्। उत। वः। रुहः। अध। शतक्रत्व इति शतऽक्रत्वः। यूयम्। इमम्। मे। अगदम्। कृत॥७६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 76
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    भावार्थ - माणसांनी सर्व प्रथम औषधांचे सेवन, पथ्याचे आचरण व नियमपूर्वक व्यवहार करून शरीर निरोगी बनवावे. कारण त्याशिवाय धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष यांचे अनुष्ठान कोणीही समर्थपणे करू शकत नाही.

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