अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 131/ मन्त्र 13
सूक्त -
देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा
छन्दः - दैवी बृहती
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
शक॑ ब॒लिः ॥
स्वर सहित पद पाठशक॑ । ब॒लि: ॥१३१.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
शक बलिः ॥
स्वर रहित पद पाठशक । बलि: ॥१३१.१३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 13
सूचना -
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः - १३−(शक) शक्लृ सामर्थ्ये-अच्। हे समर्थ (बलिः) म० १२। राजग्राह्यकरः ॥
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