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  • यजुर्वेद - अध्याय 4/ मन्त्र 21
    ऋषिः - वत्स ऋषिः देवता - वाग्विद्युतौ देवते छन्दः - विराट् आर्षी बृहती, स्वरः - मध्यमः
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    वस्व्य॒स्यदि॑तिरस्यादि॒त्यासि॑ रु॒द्रासि॑ च॒न्द्रासि॑। बृह॒स्पति॑ष्ट्वा सु॒म्ने र॑म्णातु रु॒द्रो वसु॑भि॒राच॑के॥२१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वस्वी॑। अ॒सि॒। अदि॑तिः। अ॒सि॒। आ॒दि॒त्या। अ॒सि॒। रु॒द्रा। अ॒सि॒। च॒न्द्रा। अ॒सि॒। बृह॒स्पतिः॑। त्वा॒। सु॒म्ने। र॒म्णा॒तु॒। रु॒द्रः। वसु॑भि॒रिति॒॑ वसु॑ऽभिः। आ। च॒के॒ ॥२१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वस्व्यस्यदितिरस्यादित्यासि रुद्रासि चन्द्रासि । बृहस्पतिष्ट्वा सुम्ने रम्णातु रुद्रो वसुभिरा चके ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वस्वी। असि। अदितिः। असि। आदित्या। असि। रुद्रा। असि। चन्द्रा। असि। बृहस्पतिः। त्वा। सुम्ने। रम्णातु। रुद्रः। वसुभिरिति वसुऽभिः। आ। चके॥२१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 4; मन्त्र » 21
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    पदार्थ -

    १. गत मन्त्र के अनुसार आचार्यकुल में आये हुए विद्यार्थियों को आचार्य वेदज्ञान प्राप्त कराता है। वेदज्ञान प्राप्त करके विद्यार्थी अनुभव करता है और कहता है कि हे वेदवाणि! तू ( वस्वी असि ) = उत्तम निवास देनेवाली है। जीवन के लिए सब उत्तम साधनों का प्रतिपादन करके तू हमारे जीवन को उत्तम बनाती है। 

    २. ( अदितिः असि ) = तू हमारा खण्डन न होने देनेवाली है। हमारे स्वास्थ्य की तू साधिका है। 

    ३. ( आदित्या असि ) = गुणों का आदान करनेवाली है [ आदानात् आदित्यः ]। तेरे अध्ययन से हममें गुणग्रहण की वृत्ति प्रबल होती है। 

    ४. ( रुद्रा असि ) = तू संसार के सब पदार्थों का ज्ञान देनेवाली है [ रुत्+र ]। सब सत्य विद्याओं की खान है। 

    ५. ( चन्द्रा असि ) = तू हमारी मनोवृत्ति को आनन्दमय बनानेवाली है। इसके अध्ययन से मन निर्मल व द्वेषशून्य हो जाता है। 

    ६. ( बृहस्पतिः ) = ब्रह्मणस्पति = वेदज्ञान का पति ( त्वा ) = तुझे ( सुम्ने ) = प्रभु-स्तवन में ( रम्णातु ) = [ रमयतु ] रमण करनेवाला बनाये, अर्थात् वेदज्ञान प्राप्त कर लेने पर वह इन वेदवाणियों से प्रभु-स्तवन में आनन्द का अनुभव करे। 

    ७. ( रुद्रः ) = उपदेश देनेवाला आचार्य ( वसुभिः ) = अपने समीप निवास करनेवाले अन्तेवासी शिष्यों के साथ ( आचके ) = तेरी ही कामना करे, अर्थात् आचार्य और शिष्य वेदज्ञान में आनन्द का अनुभव करें। [ यहाँ विद्यार्थी को ‘वसु’ कहा है, क्योंकि वह आचार्य के समीप निवास करता है, वसति इति ]।

    भावार्थ -

    भावार्थ — आचार्य व शिष्य वेदवाणी के पढ़ने में आनन्द का अनुभव करें।

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