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अथर्ववेद > काण्ड 2 > सूक्त 29

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  • अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 29/ मन्त्र 5
    सूक्त - अथर्वा देवता - द्यावापृथिवी, विश्वे देवाः, मरुद्गणः, आपो देवाः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायुष्य सूक्त

    ऊर्ज॑मस्मा ऊर्जस्वती धत्तं॒ पयो॑ अस्मै पयस्वती धत्तम्। ऊर्ज॑म॒स्मै द्याव॑पृथि॒वी अ॑धातां॒ विश्वे॑ दे॒वा म॒रुत॒ ऊर्ज॒मापः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऊर्ज॑म् । अ॒स्मै॒ । ऊ॒र्ज॒स्व॒ती॒ इति॑ । ध॒त्त॒म् । पय॑: । अ॒स्मै॒ । प॒य॒स्व॒ती॒ इति॑ । ध॒त्त॒म् । ऊर्ज॑म् । अ॒स्मै । द्यावा॑पृथि॒वी इति॑ । अ॒धा॒ता॒म् । विश्वे॑ । दे॒वा: । म॒रुत॑: । ऊर्ज॑म् । आप॑: ॥२९.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऊर्जमस्मा ऊर्जस्वती धत्तं पयो अस्मै पयस्वती धत्तम्। ऊर्जमस्मै द्यावपृथिवी अधातां विश्वे देवा मरुत ऊर्जमापः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऊर्जम् । अस्मै । ऊर्जस्वती इति । धत्तम् । पय: । अस्मै । पयस्वती इति । धत्तम् । ऊर्जम् । अस्मै । द्यावापृथिवी इति । अधाताम् । विश्वे । देवा: । मरुत: । ऊर्जम् । आप: ॥२९.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 29; मन्त्र » 5

    पदार्थ -

    १. सन्तान की उत्तमता के लिए माता-पिता को पौष्टिक अन्न व दूध का ग्रहण करना चाहिए। उन्हें पौष्टिक अन्न व दूध की कमी न हो। (ऊर्जस्वती) = हे पौष्टिक अन्नवाले माता पिताओ! आप (अस्मै) = इस उत्तम सन्तान की प्राप्ति के लिए (ऊर्जम्) = पौष्टिक अन्न को (धत्तम्) = धारण करो। (पयस्वती) = उत्तम दूधवाले होते हुए (अस्मै) = इस सन्तान की प्राप्ति के लिए (पयः धत्तम्) = दूध का धारण करो। माता-पिता 'ऊ' व पयस्' को धारण करनेवाले हों। उत्तम ओषधियों का रस ही 'ऊ' है। गवादि पशुओं का दूध 'पयस्' है। इनका प्रयोग करनेवाले माता-पिता उत्तम सन्तान प्राप्त करते हैं। २. अब इस सन्तान के होने पर (द्यावापृथिवी) = धुलोकरूप पिता व पृथिवीलोकरूप माता (अस्मै) = इस सन्तान के लिए (ऊर्जम्) = बल व प्राणशक्ति को (अधाताम्) = धारण कराते हैं, तथा (विश्वेदेवा:) = सूर्यादि सब देव अथवा माता-पिता व आचार्य आदि देव, (मरुतः) = प्राण तथा (आपः) = जल (ऊर्जम्) = बल व प्राणशक्ति देते हैं। ३. पूर्वार्ध में 'पयस्' के सान्निध्य से ऊर्जु शब्द का अर्थ पौष्टिक अन्न लिया है। माता-पिता 'ऊर्जु व पयस्' का प्रयोग करनेवाले हो, ऐसा होने पर ही सन्तानों का उत्तम होना सम्भव है। उत्तरार्ध में 'ऊर्ज' का भाव बल व प्राणशक्ति लिया गया है। सब देवों की अनुकूलता होने पर बल व प्राणशक्ति प्राप्त होती है।

    भावार्थ -

    माता-पिता ओषधि-रसों व दुग्ध' का सेवन करनेवाले हों। सन्तान देवों की अनुकूलता में जीवन बिताए।

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