अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 8/ मन्त्र 2
सूक्त - अथर्वा
देवता - धाता, सविता, इन्द्रः, त्वष्टा, अदितिः
छन्दः - जगती
सूक्तम् - राष्ट्रधारण सूक्त
धा॒ता रा॒तिः स॑वि॒तेदं जु॑षन्ता॒मिन्द्र॒स्त्वष्टा॒ प्रति॑ हर्यन्तु मे॒ वचः॑। हु॒वे दे॒वीमदि॑तिं॒ शूर॑पुत्रां सजा॒तानां॑ मध्यमे॒ष्ठा यथासा॑नि ॥
स्वर सहित पद पाठधा॒ता । रा॒ति: । स॒वि॒ता । इ॒दम् । जु॒ष॒न्ता॒म् । इन्द्र॑: । त्वष्टा॑ । प्रति॑ । ह॒र्य॒न्तु॒ । मे॒ । वच॑: । हु॒वे । दे॒वीम् । अदि॑तिम् । शूर॑ऽपुत्राम् । स॒ऽजा॒ताना॑म् । म॒ध्य॒मे॒ऽस्था: । यथा॑ । असा॑नि ॥८.२॥
स्वर रहित मन्त्र
धाता रातिः सवितेदं जुषन्तामिन्द्रस्त्वष्टा प्रति हर्यन्तु मे वचः। हुवे देवीमदितिं शूरपुत्रां सजातानां मध्यमेष्ठा यथासानि ॥
स्वर रहित पद पाठधाता । राति: । सविता । इदम् । जुषन्ताम् । इन्द्र: । त्वष्टा । प्रति । हर्यन्तु । मे । वच: । हुवे । देवीम् । अदितिम् । शूरऽपुत्राम् । सऽजातानाम् । मध्यमेऽस्था: । यथा । असानि ॥८.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 8; मन्त्र » 2
विषय - 'धाता, राति, सविता, इन्द्र, त्वष्टा' तथा 'शूरपुत्रा अदिति'
पदार्थ -
१. (धाता) = धारण करनेवाला, (राति:) = दानशील, (सविता) = निर्माण करनेवाला में (इदं वचः) = मेरे इस वचन को (जुषन्ताम्) = प्रीतिपूर्वक सेवन करें। (इन्द्रः) = शत्रुओं का विद्रावण करनेवाला, (त्वष्टा) = क्रियाशील, सदा कार्यों में लगे रहनेवाला-ये सब देव मेरे वचन को (प्रतिहर्यन्तु) = चाहें। मेरे वचन उन्हें प्रिय हों। २. (देवीम्) = दिव्य गुणोंवाली (शूरपुत्राम्) = शूरों को जन्म देनेवाली (अदि तिम्) = अदीना देवमाता को (हुवे) = पुकारता हूँ। ये सब ऐसा प्रयत्न करें कि (यथा) = जिससे मैं (सजातानाम्) = समानजातिवाले लोगों में (मध्यमेष्ठा:) = मध्यस्थ (असानि) = होऊँ। ये सजात मुझे अपना मध्यस्थ जानें। इनमें श्रेष्ठ बनकर मैं इनके विवादों में मध्यस्थ बन पाऊँ। ३. यदि किसी राष्ट्र में लोग 'धाता, राति, सविता, इन्द्र व त्वष्टा' हों और राष्ट्र की माताएँ 'शूरपुत्रा व आदिति' हों तो राष्ट्र की इस उत्तम स्थिति के कारण राष्ट्रपति का सजात लोगों में आदर स्वाभाविक है। राजा चाहता है कि सब प्रजावर्ग धाता आदि के रूप में होता हुआ राष्ट्रपति के इस वचन का आदर करे कि 'मैं सजातों में श्रेष्ठ बन पाऊँ।'
भावार्थ -
राजा चाहता है कि उसकी प्रजा के लोग 'धारणात्मक कर्मों में प्रवृत्त, दानशील, निर्माण में लगे हुए, काम-क्रोध आदि के शिकार न होते हुए सदा क्रियाशील हों। राष्ट्र की माताएँ देववृत्तिवाली व शुर सन्तानों को जन्म देनेवाली हों, जिससे राष्ट्र की ऐसी उत्तम स्थिति हो कि इस राष्ट्र का राष्ट्रपति सजात लोगों में श्रेष्ठ गिना जाए।'
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