अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 8/ मन्त्र 6
अ॒हं गृ॑भ्णामि॒ मन॑सा॒ मनां॑सि॒ मम॑ चि॒त्तमनु॑ चि॒त्तेभि॒रेत॑। मम॒ वशे॑षु॒ हृद॑यानि वः कृणोमि॒ मम॑ या॒तमनु॑वर्त्मान॒ एत॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒हम् । गृ॒भ्णा॒मि॒ । मन॑सा । मनां॑सि । मम॑ । चि॒त्तम् । अनु॑ । चि॒त्तेभि॑: । आ । इ॒त॒। मम॑ । वशे॑षु । हृद॑यानि । व॒: । कृ॒णो॒मि॒ । मम॑ । या॒तम् । अनु॑ऽवर्त्मान: । आ । इ॒त॒ ॥८.६॥
स्वर रहित मन्त्र
अहं गृभ्णामि मनसा मनांसि मम चित्तमनु चित्तेभिरेत। मम वशेषु हृदयानि वः कृणोमि मम यातमनुवर्त्मान एत ॥
स्वर रहित पद पाठअहम् । गृभ्णामि । मनसा । मनांसि । मम । चित्तम् । अनु । चित्तेभि: । आ । इत। मम । वशेषु । हृदयानि । व: । कृणोमि । मम । यातम् । अनुऽवर्त्मान: । आ । इत ॥८.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 8; मन्त्र » 6
विषय - राजा व प्रजा की अनुकूलता
पदार्थ -
१. राजा प्रजाओं से कहता है कि (अहम्) = मैं (मनसा) = अपने मन के द्वारा (मनांसि) = तुम्हारे मनों को गृभ्णामि ग्रहण करता हूँ-अपने वश में करता हूँ। तुम सब (मम) = मेरे (चित्तम् अनु)-चित्त के अनुकूल (चित्तेभिः) = चित्तों से (एत) = गतिवाले होओ। २. (मम वशेषु) = मुझसे चाहे गये अर्थों में (वः) = तुम्हारे (हृदयानि) = हदयों को (कृणोमि) = करता हूँ। (मम) = मेरे (यातम् अनु वनि:) = गमन के अनुकूल मार्गवाले (एत) = तुम गति करो-मेरे मार्ग के पीछे चलनेवाले होओ।
भावार्थ -
राजा को प्रजा की पूर्ण अनुकूलता प्राप्त हो तभी राष्ट्र विजयी व उन्नत होता है।
विशेष -
इस उत्तम राष्ट्र में ही 'वामदेव' सुन्दर दिव्य गुणोंवाले पुरुष का जन्म होता है। यही अगले सूक्त का ऋषि है