Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 11

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 11/ मन्त्र 9
    सूक्त - भृग्वङ्गिराः देवता - इन्द्रः, अनड्वान् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अनड्वान सूक्त

    यो वेदा॑न॒डुहो॒ दोहा॑न्स॒प्तानु॑पदस्वतः। प्र॒जां च॑ लो॒कं चा॑प्नोति॒ तथा॑ सप्तऋ॒षयो॑ विदुः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । वेद॑ । अ॒न॒डुह॑: । दोहा॑न् । स॒प्त । अनु॑पऽदस्वत: । प्र॒ऽजाम् । च॒ । लो॒कम् । च॒ । आ॒प्नो॒ति॒ । तथा॑ । स॒प्त॒ऽऋ॒षय॑: ॥११.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो वेदानडुहो दोहान्सप्तानुपदस्वतः। प्रजां च लोकं चाप्नोति तथा सप्तऋषयो विदुः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । वेद । अनडुह: । दोहान् । सप्त । अनुपऽदस्वत: । प्रऽजाम् । च । लोकम् । च । आप्नोति । तथा । सप्तऽऋषय: ॥११.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 11; मन्त्र » 9

    पदार्थ -

    १. इस संसार-शकट का वहन करनेवाले वे प्रभु 'अनड्रान्' हैं। उस अनडान् पर ही इस सारे ब्रह्माण्ड का बोझ रखा है, परन्तु यह सब उसके एक देश में ही है। पुरुषसूक्त में कहा है-('पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि')। यहाँ कहते हैं कि (एतत्) = यह (अनडुहः) = इस अनड्डान् प्रभु का (मध्यम्) = मध्य भाग है, (यत्र) = जहाँ कि (एष:) = यह (वहः) = सारे संसार का बोझ (आहितः) = स्थापित है। प्रभु ने अपने एक देश में सारे ब्रह्माण्ड को धारण किया हुआ है। २. (एतावत्) = इतना ही (अस्य) = इस अनट्टान् का (प्राचीनम्) = प्राग्भाग है (यावान्) = जितना कि (प्रत्यङ्) = प्रत्यग्भाग (समाहितः) = सम्यक् निवर्तित हुआ है-बना है। इधर उस अनडान् का पूर्वभाग है, उधर प्राग्भाग है, मध्य में यह सारा ब्रह्माण्ड रक्खा हुआ है।

    भावार्थ -

    प्रभु अनन्त व्याप्तिवाले हैं। यह सारा ब्रह्माण्ड प्रभु के एक देश में है।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top