अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 20/ मन्त्र 1
सूक्त - मातृनामा
देवता - मातृनामौषधिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - पिशाचक्षयण सूक्त
आ प॑श्यति॒ प्रति॑ पश्यति॒ परा॑ पश्यति॒ पश्य॑ति। दिव॑म॒न्तरि॑क्ष॒माद्भूमिं॒ सर्वं॒ तद्दे॑वि पश्यति ॥
स्वर सहित पद पाठआ । प॒श्य॒ति॒ । प्रति॑ । प॒श्य॒ति॒ । परा॑ । प॒श्य॒ति॒ । पश्य॑ति । दिव॑म् । अ॒न्तरि॑क्षम् । आत् । भूमि॑म् । सर्व॑म् । तत् । दे॒वि॒ । प॒श्य॒ति॒ ॥२०.१॥
स्वर रहित मन्त्र
आ पश्यति प्रति पश्यति परा पश्यति पश्यति। दिवमन्तरिक्षमाद्भूमिं सर्वं तद्देवि पश्यति ॥
स्वर रहित पद पाठआ । पश्यति । प्रति । पश्यति । परा । पश्यति । पश्यति । दिवम् । अन्तरिक्षम् । आत् । भूमिम् । सर्वम् । तत् । देवि । पश्यति ॥२०.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 20; मन्त्र » 1
विषय - सर्वदर्शन
पदार्थ -
१. 'स्तुता मया वरदा वेदमाता' इन शब्दों में बेद को माता कहा गया है। यह वेदमाता हम पुत्रों के जीवनों को प्रकाशमय करती है, इसी से इसे 'देवी' कहा गया है। हे (देवी) = हमारे जीवनों को प्रकाशमय बनानेवाली वेदमातः! आपकी कृपा से आपका पुत्र (आ पश्यति) = चारों ओर सब पदार्थों को देखनेवाला बनता है, (प्रतिपश्यति) = यह प्रत्येक पदार्थ को देख पाता है, (परापश्यति) = इस जगत् से परे अलौकिक वस्तुओं [आत्मतत्त्व] को भी देखनेवाला यह बनता है, इसप्रकार यह पश्यति-ठीक से देखता है। २. हे देवि! (दिवम्) = धुलोक को, (अन्तरिक्षम्) = अन्तरिक्षलोक को (आत् भूमिम्) = और इस भूमि को (तत् सर्वम्) = उस सम्पूर्ण जगत् को (पश्यति) = यह आपका पुत्र आपकी कृपा से देखता है। इस वेदमाता से सब लोक-लोकान्तरों का ज्ञान प्रास होता है।
भावार्थ -
यह वेदमाता देवी है। यह हमारे लिए सब लोक-लोकान्तरों व पदार्थों का ज्ञान प्राप्त कराती है।
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