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अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 37

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 37/ मन्त्र 3
    सूक्त - बादरायणिः देवता - अप्सरासमूहः छन्दः - त्र्यवसाना षट्पदा त्रिष्टुप् सूक्तम् - कृमिनाशक सूक्त

    न॒दीं य॑न्त्वप्स॒रसो॒ऽपां ता॒रम॑वश्व॒सम्। गु॑ल्गु॒लूः पीला॑ नल॒द्यौ॒क्षग॑न्धिः प्रमन्द॒नी। तत्परे॑ताप्सरसः॒ प्रति॑बुद्धा अभूतन ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न॒दीम् । य॒न्तु॒ । अ॒प्स॒रस॑: । अ॒पाम् । ता॒रम् । अ॒व॒ऽश्व॒सम् । गु॒ल्गु॒लू: । पीला॑ । न॒ल॒दी ।औ॒क्षऽग॑न्धि: । प्र॒ऽम॒न्द॒नी । तत् । परा॑ । इ॒त॒ । अ॒प्स॒र॒स॒: । प्रति॑ऽबुध्दा: । अ॒भू॒त॒न॒ ॥३७.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नदीं यन्त्वप्सरसोऽपां तारमवश्वसम्। गुल्गुलूः पीला नलद्यौक्षगन्धिः प्रमन्दनी। तत्परेताप्सरसः प्रतिबुद्धा अभूतन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नदीम् । यन्तु । अप्सरस: । अपाम् । तारम् । अवऽश्वसम् । गुल्गुलू: । पीला । नलदी ।औक्षऽगन्धि: । प्रऽमन्दनी । तत् । परा । इत । अप्सरस: । प्रतिऽबुध्दा: । अभूतन ॥३७.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 37; मन्त्र » 3

    पदार्थ -

    १. (अप्सरस:) = जलप्राय स्थानों में विहरण करनेवाले (कृमि अपां तारम्) = [तारऽत्युबैः] जलों से ऊपर तक भरी हुई (नदीम्) = नदी को ही (यन्तु) = जाएँ। ये वहाँ (अवश्वसम्) = प्राणशून्य होकर नष्ट हो जाएँ [अब, श्वस प्राणने]। २. हे (अप्सरस:) = जलप्रायः स्थानों में विचरनेवाले रोगकृमियो! (गुल्गुलः),(पीला), (नलदी), (ओक्षगन्धि), (प्रमन्दनी) = इन नामोंवाली ये ओषधियाँ (प्रतिबद्धाः अभूतन) = प्रतिबुद्ध हुई है-हमारे ज्ञान का विषय बनी हैं, (तत् परेत) = अब तुम यहाँ से बाहर हो जाओ। इन औषधियों के प्रयोग से हम तुम्हारा नाश करते हैं। ३. गुलाल के नाम 'भूतहर, यातुन व रक्षोहा' भी हैं। पीला के नाम "गुडफल व संसी' हैं। नलदी भूतघ्नी, दाहनी, पित्तनी' है। ओक्षगन्धी का दूसरा नाम 'ऋषभक' भी है। यह बाजीकरण औषध है। प्रमन्दनी [घातकी] 'क्रिमि व विसर्प'-जित् है [विसर्प-एग्जिमा]।

    भावार्थ -

    'गुल्गुल, पीला, नलदी, ओक्षगन्धि, व प्रमन्दनी' नामक ओषधियों जलप्राय स्थानों में हो जानेवाले कृमियों का नाश कर देती है।

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