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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 26

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 26/ मन्त्र 6
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अदिति छन्दः - द्विपदा प्राजापत्या बृहती सूक्तम् - नवशाला सूक्त

    एयम॑गन्ब॒र्हिषा॒ प्रोक्ष॑णीभिर्य॒ज्ञं त॑न्वा॒नादि॑तिः॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । इ॒यम् । अ॒ग॒न् । ब॒र्हिषा॑ । प्र॒ऽउक्ष॑णीभि: । य॒ज्ञम् । त॒न्वा॒ना । अदि॑ति: । स्वाहा॑ ॥२६.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एयमगन्बर्हिषा प्रोक्षणीभिर्यज्ञं तन्वानादितिः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । इयम् । अगन् । बर्हिषा । प्रऽउक्षणीभि: । यज्ञम् । तन्वाना । अदिति: । स्वाहा ॥२६.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 26; मन्त्र » 6

    पदार्थ -

    १. (इयम् अदिति:) = यह [अ+दिति] स्वास्थ्य की देवता (आ अगन्) = हमें प्राप्त हुई है। (बर्हिषा) = वासनाओं को जिसमें से उखाड़ दिया गया है, उस हृदय के साथ तथा (प्रोक्षणीभिः) = [उक्ष सेचने] शरीर में शक्तियों के सेचन के साथ (यज्ञं तन्वाना) = यज्ञों का यह विस्तार कर रही है, (स्वाहा) = मैं इस अदिति के प्रति अपना अर्पण करूँ।

    भावार्थ -

    हम स्वस्थ बनकर पवित्र हदय व शक्ति के रक्षण के साथ यज्ञों का विस्तार करें, इन्हीं के प्रति अपना अर्पण करें।



     

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