अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 26/ मन्त्र 9
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - भगः
छन्दः - त्रिपदा पिपीलिकमध्या पुरउष्णिक्
सूक्तम् - नवशाला सूक्त
भगो॑ युनक्त्वा॒शिषो॒ न्वस्मा अ॒स्मिन्य॒ज्ञे प्र॑वि॒द्वान्यु॑नक्तु सु॒युजः॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठभग॑: । यु॒न॒क्तु॒ । आ॒ऽशिष॑: । नु । अ॒स्मै । अ॒स्मिन् । य॒ज्ञे । प्र॒ऽवि॒द्वान् । यु॒न॒क्तु॒ । सु॒ऽयुज॑: । स्वाहा॑ ॥२६.९॥
स्वर रहित मन्त्र
भगो युनक्त्वाशिषो न्वस्मा अस्मिन्यज्ञे प्रविद्वान्युनक्तु सुयुजः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठभग: । युनक्तु । आऽशिष: । नु । अस्मै । अस्मिन् । यज्ञे । प्रऽविद्वान् । युनक्तु । सुऽयुज: । स्वाहा ॥२६.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 26; मन्त्र » 9
विषय - ऐश्वर्य व उत्तम इच्छाएँ
पदार्थ -
१. (प्रविद्वान्) = प्रकृष्ट ज्ञानी, (सुयुजः) = हमें उत्तम कर्मों में लगानेवाला (भग:) = ऐश्वर्यशाली प्रभु (नु) = अब (अस्मिन् यज्ञे) = इस जीवन-यज्ञ में (अस्मै) = इस संसार के हित के लिए (आशिषः) = उत्तम इच्छाओं को (युनत्तु) = हमारे साथ जोड़े। (स्वाहा) = हम उस 'भग' के प्रति अपना अर्पण करते हैं। वह हमें युनतु सदा उत्तम कर्मों में लगाए।
भावार्थ -
हम ऐश्वर्य को प्राप्त करके उत्तम इच्छाओं से युक्त हों-संसार का हित करनेवाले हों।
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