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अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 60

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  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 60/ मन्त्र 5
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - वास्तोष्पतिः, गृहसमूहः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रम्यगृह सूक्त

    उप॑हूता इ॒ह गाव॒ उप॑हूता अजा॒वयः॑। अथो॒ अन्न॑स्य की॒लाल॒ उप॑हूतो गृ॒हेषु॑ नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उप॑ऽहूता: । इ॒ह । गाव॑: । उप॑ऽहूता: । अ॒ज॒ऽअ॒वय॑: । अथो॒ इति॑ । अन्न॑स्य । की॒लाल॑: । उप॑ऽहूत: । गृ॒हेषु॑ । न॒: ॥६२.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपहूता इह गाव उपहूता अजावयः। अथो अन्नस्य कीलाल उपहूतो गृहेषु नः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उपऽहूता: । इह । गाव: । उपऽहूता: । अजऽअवय: । अथो इति । अन्नस्य । कीलाल: । उपऽहूत: । गृहेषु । न: ॥६२.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 60; मन्त्र » 5

    पदार्थ -

    १. (इह) = यहाँ घर में (गावः उपहुता:) = गौवों के लिए प्रार्थना की गई है। इसी प्रकार (अजावयः उपहताः) = भेड़ और बकरियों के लिए प्रार्थना की गई है (अथो) = और (अन्नस्य कीलाल:) = अन्न का सारभूत अंश, अर्थात् उत्कृष्ट सात्विक अन्न (न: गृहेषु) = हमारे घरों में (उपहत:) = प्रार्थित हुआ है।

    भावार्थ -

    हमारे घरों में गौवें, भेड़ें, बकरियाँ हों तथा इन घरों में अन्न के सारभूत अंश की, पौष्टिक अन्न की कमी न हो।

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