Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 60

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 60/ मन्त्र 6
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - वास्तोष्पतिः, गृहसमूहः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रम्यगृह सूक्त

    सू॒नृता॑वन्तः सु॒भगा॒ इरा॑वन्तो हसामु॒दाः। अ॑तृ॒ष्या अ॑क्षु॒ध्या स्त॒ गृहा॒ मास्मद्बि॑भीतन ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सू॒नृता॑ऽवन्त: । सु॒ऽभगा॑: । इरा॑ऽवन्त: । ह॒सा॒मु॒दा: । अ॒तृ॒ष्या: । अ॒क्षु॒ध्या: । स्त॒ । गृहा॑: । मा । अ॒स्मत् । बि॒भी॒त॒न॒ ॥६२.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सूनृतावन्तः सुभगा इरावन्तो हसामुदाः। अतृष्या अक्षुध्या स्त गृहा मास्मद्बिभीतन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सूनृताऽवन्त: । सुऽभगा: । इराऽवन्त: । हसामुदा: । अतृष्या: । अक्षुध्या: । स्त । गृहा: । मा । अस्मत् । बिभीतन ॥६२.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 60; मन्त्र » 6

    पदार्थ -

    १. हे (गृहा:) = गृह में रहनेवालो! तुम (सून्तावन्त: स्त) = प्रिय, सत्य वाणीवाले होओ [प्रवसति यजमाने गृहे जातमप्यरिष्टं पुनरागच्छति गृहस्वामिनि तहिवसे न ज्ञापनीयम्] (सुभगा:) = तुम शोभन भाग्य से युक्त होओ (इरावन्त:) =[इरा अन्न] प्रशस्त अन्नवाले हसामुदाः-हँसी के साथ प्रसन्न [मोदमान] होओ। हास से अभिव्यक्त सन्तोषवाले तुम होओ। २. (अतृष्याः अक्षुध्याः स्त) = भूखे प्यासे न रहो, तुम्हें खान-पान की कमी न हो। (गृहाः मा अस्मद् बिभीतन) = हे गृहो! हमसे भयभीत न होओ। गृहपति के मधुरस्वभाव से सबको प्रसन्नता ही हो।

    भावार्थ -

    घर में प्रिय, सत्यवाणी, सौभाग्य, प्रशस्त अन्न व हास्य के साथ प्रमोद हो। यहाँ सब तृप्त हों तथा गृहपति का स्वभाव अत्यन्त मधुर हो।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top