अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 10/ मन्त्र 11
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - विराट्
छन्दः - साम्नी बृहती
सूक्तम् - विराट् सूक्त
यन्त्य॑स्य॒ समि॑तिं सामि॒त्यो भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयन्ति॑ । अ॒स्य॒ । सम्ऽइ॑तिम् । सा॒म्ऽइ॒त्य: । भ॒व॒ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥१०.११॥
स्वर रहित मन्त्र
यन्त्यस्य समितिं सामित्यो भवति य एवं वेद ॥
स्वर रहित पद पाठयन्ति । अस्य । सम्ऽइतिम् । साम्ऽइत्य: । भवति । य: । एवम् । वेद ॥१०.११॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10;
पर्यायः » 1;
मन्त्र » 11
विषय - समिति
पदार्थ -
१. अब एक महाद्वीप के देशों में यदि परस्पर कोई कलह उपस्थित हो जाए तो क्या हो', यह विचार उपस्थित होने पर (सा उदक्रामत्) = वह विराट् अवस्था और उत्क्रान्त हुई और (सा समितौ न्यक्रामत्) = वह समिति में विश्रान्त हुई। एक महाद्वीप के देशों के प्रतिनिधियों की यह सभा समिति कहलायी-जिसमें विविध देशों के प्रतिनिधियों का 'सम् इति' मिलकर गमन होता है। २. (यः एवं वेद) = जो इस समिति के महत्त्व को समझता है और लोगों को इसके महत्त्व को समझाता है वह (सामित्यः भवति) = [समिती साधुः आदरणीयः] समिति में उत्तम होता है और इसके पुकारने पर सब सभ्य (समितिं यन्ति) = समिति में उपस्थित होते हैं। ये समिति के सदस्य देशों के पारस्परिक संघर्षों को पनपने नहीं देते।
भावार्थ -
देशों के प्रतिनिधियों की सभा 'समिति' कहलाती है, इसका प्रधान 'सामित्य' कहा जाता है। इसकी अध्यक्षता में समिति के सदस्य देशों के कलहों को दूर करने का यत्न करते हैं।
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