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अथर्ववेद > काण्ड 8 > सूक्त 10 > पर्यायः 1

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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 10/ मन्त्र 2
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - विराट् छन्दः - याजुषी जगती सूक्तम् - विराट् सूक्त

    सोद॑क्राम॒त्सा गार्ह॑पत्ये॒ न्यक्रामत्।

    स्वर सहित पद पाठ

    सा ।उत् । अ॒क्रा॒म॒त् । सा । गार्ह॑ऽपत्ये । नि । अ॒क्रा॒म॒त् ॥१०.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोदक्रामत्सा गार्हपत्ये न्यक्रामत्।

    स्वर रहित पद पाठ

    सा ।उत् । अक्रामत् । सा । गार्हऽपत्ये । नि । अक्रामत् ॥१०.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10; पर्यायः » 1; मन्त्र » 2

    पदार्थ -

    १. यहाँ काव्यमय भाषा में शासन-व्यवस्था के विकास का सुन्दर वर्णन हुआ है। (अग्रे) = पहले (वै) = निश्चय से (इदम्) = यह (विराट्) = [वि-राट्] राजा से रहित स्थिति आसीत् थी। कोई शासक न था। (तस्याः जाताया:) = उस प्रादुर्भूत हुई-हुई अराजकता की स्थिति से (सर्वं अबिभेत्) = सभी भयभीत हो उठे कि (इयं एव) = यह विराट् अवस्था ही (इदं भविष्यति) = इस जगत् को प्राप्त होगी [भू प्राप्ती] (इति) = क्या इसी प्रकार यह सब रहेगा? २. इसप्रकार सबके भयभीत होने पर सबमें विचार उठा। एक घर में परिवार के व्यक्तियों ने मिलकर सोचा कि क्या करना चाहिए? परिणामतः (सा) = वह विराट् अवस्था (उदक्रामत्) = उत्क्रान्त हुई। उसमें कुछ सुधार हुआ और प्रत्येक घर में एक व्यक्ति प्रमुख बनाया गया। इसप्रकार (सा) = विराट् अवस्था उत्क्रान्त होकर (गार्हपत्ये न्यक्रामत्) = गार्हपत्य में आकर स्थित हुई। प्रत्येक घर में गृहपति का शासन स्थापित हो गया। घर में अराजकता का लोप हो गया। (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार गाईपत्य व्यवस्था के महत्व को समझ लेता है, वह (गृहमेधी भवति) = गृहस्थ यज्ञ को सुन्दरता से चलानेवाला होता है, (गृहपतिः भवति) = गृहपति बनता है-अराजकता पैदा न होने देकर घर का रक्षण करता है।

    भावार्थ -

    विराट् [अराजकता] की स्थिति सबको भयंकर प्रतीत हुई, अत: लोगों ने विचार कर प्रत्येक घर में एक को मुखिया नियत किया। यही 'गार्हपत्य' कहलायी। इससे घर में अराजकता का लोप होकर शान्ति की स्थिति उत्पन्न हुई।

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